Sunday, June 22, 2008

Geet2

ग़ज़ल
क्षेत्रपाल शर्मा, सहायक निदेशक, (ईएसआई.कारपोरेशन)


.गैर हूं ये जानता हूं , मैं तेरा कुछ- भी- नहीं, जो भी हो अब इस तरह, तुम यूं पराया न करो 1
अब तलक हर एक ने सिर्फ तारीफ़ तुम्‍हारी की है, मिलने पर नज़रें, नीचे तो झुकाया न करो 1
सफ़र में कुछ खू़बसूरत नरम-पल भी होते हैं, तुम उनकी ख़्वाहिशमंद न सही, रूठ जाया न करो 1
तुमने मुझे रुसवाई के सिवा दिया क्‍या है, भूल कर मोती, पलकों से बहाया न करो 1

कहूं न तुम से तो फिर दिल की आग दहकेगी, ग़ैर की सुन के, फि.जूल में, तमतमाया न करो 1
ताबीर मेरे .ख्‍वाब की एक दिन, देखना बदलेगी ज़रूर, हाल-फिलहाल तुम मेरी आबरू, .जाया न करो 1



कोलकाता

(07-02-2007)

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