Thursday, March 17, 2022

पंचदीप भारती अंक 1


Friday, July 4, 2014

दोहे





                             दोहे

                                  क्षेत्रपाल शर्मा
                                             शान्तिपुरम , सासनी गेट अलीगढ      202001



स्विस कहते ही आ गई उन दामों की याद  l,
मुंह में पानी आ गया , जस शक्कर सा स्वाद.ll

वह  अंगद  का पांव  है हिला सके  न कोय,l
अपने  से हिल जाय  तो,  बात दूसरी होय ll.

बडे बडे वे लोग हैं   हाथी जैसा नाम l
भारी भरकम  भोज लें, पर न शेर  सा काम ll

फ़ूट  यहां पर फ़लत  है खिलें सैंद से साट l,
भाई को  भाई करे , भाई ! बारहबाट ll

रट्टा  में बट्टा नहीं,  यू पी  के स्कूल l
दीमक  डिगरी चाटती,  भैया फ़ांकें  धूल ll

सब न मिले है सब जगह, कहीं किसी का ज़ोर l
वहां खरे  ही लोग सब , यहां  मिलावट  खोर ll

इन्तज़ार कर थक गए, लिए शिकायत नैन l
हाकिम  तो  सुनता नहीं , कहने  को बेचैन ll

वादी प्रतिवादी कुटुम ,चिरजीवी  परिवाद l
घर में चूल्हे बहुत हैं ,टूट गया संवाद ll



                          

Tuesday, March 25, 2014

दोहे


     दोहे

                             ...क्षेत्रपाल शर्मा

मेरे जैसे बहुत हैं पर तेरी क्या बात,
एक धरा पर प्रकृति की अति उत्तम सौगात ll

रूप चांदनी सा खिला तिस पर बोल अमोल ,
ये सुयोग मुश्किल मिले, पानी पर कल्लोल ll

खूब विधाता ने दिया धन दौलत परिवार,
सच्चे मित्रों का मिला , छोटा सा संसार ll

सुरसा जैसी लालसा कभी न फ़टकी पास,
पतझर भी एसा कटा जस नवीन उल्लास ll

जाना सब की नियति है छोड़ यहां व्यापार,
याद तुम्हारी कर रहा मायावी संसार ll

जल सम अकुलिष आपका सुन्दर शील स्वभाव,
कब आलोपित हो गईं धरते धरते पांव ll

छोड़ यहां के फ़ूल सब अंखियां अब परदेस,
किस विधि मिलना होएगा अब मेरे सर्वेश  ll

बस तुम में ही प्रेम हो विनती बारम्बार,
कहा सुना सब माफ़ हो, अब मेरे करतार  ll



Sunday, September 22, 2013

  गीत 
                                                              ....क्षेत्रपाल शर्मा 

बालपन में मेरी इच्छाएं गगनचुम्बी थीं 
बाद में मैं स्वयं गगनचुम्बी हो गया 
देखते ही देखते हाय, अचरज 
मैं अंधेरे में कहां , कब  खो गया 

ये सब समय  का खेल है,
भागमभाग रेलमपेल है 

खिचडी बनाते न जाने कब 
गुरुजी खिचडी पकाने लग गए 
बच्चे कलारी बैठकर
 पन्नी पिलाने लग गए
घर , सास की अब जेल है 
भागमभाग  रेलमपेल है .

दुष्कर्मियों के संग में
मासेरे भाई बन गए 
कल्याण बस अपना किया 
और गोखरू से तन गए 
तेलगी , हर्षद कभी 
 या फ़िर कभी डंकेल है 

गली मुहल्ले घंटालों की 
एक बाढ सी आई है 
टेक रहित हाकिम सब एसे 
जैसे जल की काई है 
सजे हुए घोडे के , लेकिन
कोई नहीं नकेल है . 

                                         गीत 
                                                ... क्षेत्रपाल शर्मा 

किसान और नेता 

एक काम से बैठ नहीं सकता 
दूसरा  रैली बुलाता है 
एक परिश्रम से , समवेत है 
दूसर दिन सोए, रात जगाता है 

एक फावडे का साथी है 
दूसरा सिर्फ़ गाल बजाता है 
इधर उधर के हथफ़ेर में माहिर
तो वह कमाई कर खाना सिखाता है 

एक संस्कृति का संवाहक है 
कि बो दो , सींचो और पकने पर काटो 
दूसरा छीना और झपट्टा
खसूटो राज करो  और  बांटो

एक अनपढ  पर समझदार है 
कि  घर संसार  चले 
दूसरा मक्कार है कि 
समाज गले ,  देश जले 

यदि दूसरे को समझ आ जाए 
तो  किसान का हुलिया बदल जाए 
इन दादुरों के बीच 
किसान लुप्त न होने पाए 

                                                      गीत 
                                                 ...क्षेत्रपाल शर्मा 
माना  तुम काफ़ी सुन्दर हो 
और         ज्ञानवान
पर किसी दूसरे की तह 
तुमने कैसे पाई 
अपने पैमाने से औने पोने में 
हो नाप  चुके हो , उसकी गहराई 

वह सुन्दर जिसके हों काम सुगढ 
जिसने घर संसार संवारा हो 
हो उसको अपने पर स्वाभिमान 
जो अनकिया कहना न गवारा हो 
वह सुन्दर जो करके
बिन बोले मन को जीता हो 
वह क्या ?जो बात बात पर
 बोल बोल कर रीता हो 
घोर अभावों को भी हंस हंस कर 
वह जो बूढों का रखे मान 
तर्पण पूजा उत्सव में
वह जो पूजा पाठी का रखे ध्यान 
इतिहास अमर है श्रुति स्मृति से 
अपने पत्थर गढता है 
जो मान दूसरों का रखे अपने सद्रस
इस जग में मान उन्हीं का बढता है .

                  गीत 
                                  ... क्षेत्रपाल शर्मा

यह गीत आरती सा गूंजे घर घर .

जब जगें मां बाप सामने हों
 परिवार  भरा किलकारी से हो 
आपस में स्नेह सुगन्ध तैरती हो 
कर्मठता का राग रंग नस नस में हो 
लोभ मोह से अपनों से भी दूर रहे 
आन पडे तो पल में न्योछावर हो 
जैसे समिधा आसीन हुई हो लकड़ी पर 
जस पवन लीन हो अग्नी पर 

यह गीत आरती

Friday, August 9, 2013

गीत

   गीत

                                                        क्षेत्रपाल शर्मा
रात  रानी को कभी झरते न देखा आपने ॥

सुरभि को गोदी लिए गुमशुम खडी थी शाम से
वह सजीली नयन-धन्वा थी मेरे ही आसपास
क्यों कहे कुछ आप गाफ़िल हो गए तो हो गए

ताल को यूं सूखते - भरते न देखा आपने ॥

दिवस का हर प्रहर सोया रहा है शाख पर ,
दोष मौसम का नहीं
बेल जलकुंभी सी हर ओर अब छतरा गई है ,

जी -जी उठे जजबात तिल -तिल मरते न देखा आपने  ॥

जो सुमन थे बिखरा दिए चंदेर में ,अंधेर में
सूरते हाल में मकसद मेरा जीना यहां
क्या भला औ क्या बुरा ये आपका है मामला

रात रानी को कभी झरते न देखा आपने ॥



ग़ीत

                           ग़ीत
                              ......क्षेत्रपाल  शर्मा
मैं इस घर हूं ,तुम उस घर हो  , खुशबू  वाला हाथ  नहीं  हैं l
मैं भी मैं हूं ,तुम भी  तुम हो , पहले वाली बात  नहीं   हैं ll
सब ने कहा रहे सुनते हम अपने मन की कह ना पाए l
थोडी बची , बहुत बीती अब, नाहक ताल भंग क्यों खाए ll
हम दोंनों के बीच भला है , कोई शह और मात नहीं है . ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll
दिन व्यतीत सब दुखमय- सुखमय किसको भला याद आता है l
आठ खाय  नौ के जुगाड में, सारा वक्त गुजर जाता है ll
स्वत्व लगे परछाईं जैसा , व्यूह कला निष्णात नहीं है  ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll
मेलजोल को बढा  देख कुछ की एसी भूकुटि तनी है l
प्यास  और ये जल- परछाईं, आज गले की फांस बनी है ll
पग नीचे अंगार बिछा है  , कहता कोई घात नहीं हैं ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll


..........शांतिपुरम , सासनीगेट , आगरा रोड  अलीगढ 202001