Sunday, June 22, 2008

Geet3

गीत क्षेत्रपाल शर्मा
मैं इस घर हूं, तुम उस घर हो, खुशबू-वाला हाथ नहीं हैं 1
तुम भी तुम हो,मैं भी मैं हूं पहले वाली बात नहीं हैं 11
हर्षित तन था, हर्षित मन भी, समय ठहरने की मनुहारें 1 समय काटने की मजबूरी, अब हाथ छुड़ाएं बूढ़े, बारें 1 धूमिल हैं सब भव्‍य नजारे काया का भी साथ नहीं है 11 तुम भी .........
सब-कुछ-है, पर-नहीं-काम का, बदल गए अपनों के तेवर 1 ठाठ-बाट सब छूटे पीछे, वृथ, अनमोल जड़ाऊँ जेवर 1 दिन ही दिन हैं, बेचैनी के, सपनों वाली रात नहीं है 11 तुम भी .........
ज्‍योतिर्मयी नयन अंधराए,
लोपित हुआ वरन कंचन-सा 1 ज्ञान-बावरा भटके मनुआ, झरे पात कंटक-ठनठन सा 1 हरिया जायें खेत, बाग़-वन, अब ऐसी बरसात नहीं है 11 तुम भी........

पता- डी-7, ईएसआई आवासन, ए.एफ.ब्‍लाक,साल्‍ट लेक, कोलकाता-64
(19.10.2007)

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