Monday, November 19, 2012

दोहे


 दोहे
                             ..क्षेत्रपाल शर्मा
सब कहते हैं हो गया, जानवरों का राज l
मानुष ही भयभीत है, अब मानुष से आज ll
ट्विटर, गुटखा फ़ेसबुक, सब रूमानी ख्याल l
जेवर कट हैं बढ चले, मटरगश्त हैं लाल  ll
एसेमेस क्लिपिन्ग और रातचीत के अंश l
बूढे को अब सालता, मोबाइल सा कंस ll
आम आदमी पिस रहा, कानूनों का बोझ l
निर्वचनों , निर्वाचनों में ,रहा पहेली खोज ll
सत्य अहिंसा लग रहा, ये सब बेचें तेल l
बड़का यदि होवन चला, अनिवारज है जेल ll
दागी , बागी हो गए, नौका खेवनहार l
तारेखों में फ़ंस रहे, जनता है लाचार ll
साधु शिरोमणि हो गए, नेता परमानंद l
दाने को मोहताज हैं, बेटा लखमीचंद ll
रिश्ते सब रिसने लगे, नीयत आया खोट l
कोट कचेरी मारे फ़िरें, झगड़े की हैं ओट ll
भले लोग हैं हर समय, लेकिन चुप क्यों आज l
कुछ बदचलनों ने रखा, जब गिरवी सभ्य समाज ll
सरिता सम बहती रहे, अहर्निश रसधार l
वाणी से सब मिलत है, मणी , मुकुट व्यापार .ll

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