Friday, August 9, 2013

ग़ीत

                           ग़ीत
                              ......क्षेत्रपाल  शर्मा
मैं इस घर हूं ,तुम उस घर हो  , खुशबू  वाला हाथ  नहीं  हैं l
मैं भी मैं हूं ,तुम भी  तुम हो , पहले वाली बात  नहीं   हैं ll
सब ने कहा रहे सुनते हम अपने मन की कह ना पाए l
थोडी बची , बहुत बीती अब, नाहक ताल भंग क्यों खाए ll
हम दोंनों के बीच भला है , कोई शह और मात नहीं है . ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll
दिन व्यतीत सब दुखमय- सुखमय किसको भला याद आता है l
आठ खाय  नौ के जुगाड में, सारा वक्त गुजर जाता है ll
स्वत्व लगे परछाईं जैसा , व्यूह कला निष्णात नहीं है  ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll
मेलजोल को बढा  देख कुछ की एसी भूकुटि तनी है l
प्यास  और ये जल- परछाईं, आज गले की फांस बनी है ll
पग नीचे अंगार बिछा है  , कहता कोई घात नहीं हैं ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll


..........शांतिपुरम , सासनीगेट , आगरा रोड  अलीगढ 202001

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