ग़ीत
......क्षेत्रपाल शर्मा
मैं इस घर हूं ,तुम उस घर हो , खुशबू वाला हाथ
नहीं हैं l
मैं भी मैं हूं ,तुम भी तुम हो , पहले वाली बात नहीं
हैं ll
सब ने कहा रहे सुनते हम अपने मन की कह ना पाए l
थोडी बची , बहुत बीती अब, नाहक ताल भंग क्यों
खाए ll
हम दोंनों के बीच भला है , कोई शह और मात नहीं
है . ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll
दिन व्यतीत सब दुखमय- सुखमय किसको भला याद आता
है l
आठ खाय नौ के जुगाड
में, सारा वक्त गुजर जाता है ll
स्वत्व लगे परछाईं जैसा , व्यूह कला निष्णात
नहीं है ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll
मेलजोल को बढा देख
कुछ की एसी भूकुटि तनी है l
प्यास और ये जल- परछाईं, आज गले की फांस बनी
है ll
पग नीचे अंगार बिछा है
, कहता कोई घात नहीं हैं ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll
..........शांतिपुरम , सासनीगेट , आगरा रोड अलीगढ 202001