Friday, August 9, 2013

गीत

   गीत

                                                        क्षेत्रपाल शर्मा
रात  रानी को कभी झरते न देखा आपने ॥

सुरभि को गोदी लिए गुमशुम खडी थी शाम से
वह सजीली नयन-धन्वा थी मेरे ही आसपास
क्यों कहे कुछ आप गाफ़िल हो गए तो हो गए

ताल को यूं सूखते - भरते न देखा आपने ॥

दिवस का हर प्रहर सोया रहा है शाख पर ,
दोष मौसम का नहीं
बेल जलकुंभी सी हर ओर अब छतरा गई है ,

जी -जी उठे जजबात तिल -तिल मरते न देखा आपने  ॥

जो सुमन थे बिखरा दिए चंदेर में ,अंधेर में
सूरते हाल में मकसद मेरा जीना यहां
क्या भला औ क्या बुरा ये आपका है मामला

रात रानी को कभी झरते न देखा आपने ॥



ग़ीत

                           ग़ीत
                              ......क्षेत्रपाल  शर्मा
मैं इस घर हूं ,तुम उस घर हो  , खुशबू  वाला हाथ  नहीं  हैं l
मैं भी मैं हूं ,तुम भी  तुम हो , पहले वाली बात  नहीं   हैं ll
सब ने कहा रहे सुनते हम अपने मन की कह ना पाए l
थोडी बची , बहुत बीती अब, नाहक ताल भंग क्यों खाए ll
हम दोंनों के बीच भला है , कोई शह और मात नहीं है . ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll
दिन व्यतीत सब दुखमय- सुखमय किसको भला याद आता है l
आठ खाय  नौ के जुगाड में, सारा वक्त गुजर जाता है ll
स्वत्व लगे परछाईं जैसा , व्यूह कला निष्णात नहीं है  ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll
मेलजोल को बढा  देख कुछ की एसी भूकुटि तनी है l
प्यास  और ये जल- परछाईं, आज गले की फांस बनी है ll
पग नीचे अंगार बिछा है  , कहता कोई घात नहीं हैं ll
पहले वाली बात नहीं हैं ll


..........शांतिपुरम , सासनीगेट , आगरा रोड  अलीगढ 202001