Friday, June 27, 2008

Geet 8

गीत क्षेत्रपाल शर्मा
सहायक निदेशक(राजभाषा)
तेरी याद जनम भर आए 1 हरियाले-घूँघट के पीछे,
दूब लाज से शरमाई है 1 छितराए आवारा बादल, चौमासे की ऋतु आई है 1
ऐसी विरल घड़ी में धरती, अंबर से अभिसार सजाए 1 तेरी याद जनम भर आए 1
वातायन, कोयल की शाला, घट सुमनों के मधु अमराए 1 साजन की पगड़ी में पन्‍नी, खिलने – मिलने के दिन आए 1
एक इशारा, खिली-खिली में -- भादों यह अमृत बरसाए 1
तेरी याद जनम भर आए 11

आँगन में तुलसी दल फूला, संझा तक देवल में दीवा, पंचों के घेरे से, मंडित चमक-दमक रहता है जीवा,
गरल, सरल बन जाए, ऐसा कोई जादू – पाठ पढ़ाए 1 तेरी याद जनम भर आए 11

पता- डी-7, ईएसआई आवासन, साल्‍ट लेक, कोलकाता-64
(19 सित.2007)

Geet 7

मै तो अपने दिल की कोई बात न कह पाया,
तुम पूछो तो देखो शायद बदल जाय मौसम.

विगत दिनो से आसमान का था मिजाज फीका
, अनहोनी हो गयी जायका बदल गया जी का,
बस फुहार से तर होने की हसरत थी बाकी ,
ऒले जेसे पाये मैने झोली के शबनम, तुम पूछो तो देखो...

कई बार जीवन मै एसे अवसर आये है,
एक ओर है पुस्पकुन्ज तो उधर शिलाये है.
मै चुपचाप सहमकर अपनी राह चला आया ,
नाम रूप पर पाने जाने कितने सन्सकरन .तुम पूछो तो देखो......

शैल शिखर से टकराना भी देखो तो आसान नही
, अब तक तो सब कुछ था लेकिन अब देखो पहचान नही.
दर्दे दिल बादल का सच मै दरिया हो जाना
, बस बह जाना गली गली वन उपवन जड जन्गम
तुम पूछो तो देखो शायद बदल जाय मौसम..........
-क्षेत्रपाल शर्मा

Geet 6

गीत
क्षेत्रपाल शर्मा
सान्झ सकारे
नयन हमारे
पन्थ निहारे
सन सन रातों की
कोने सन्करे
झिल्मिल बिखरे,
केश फ़रहरे
फुसफुस अखरे
झर बरसातों की
मैना गाये
गज़ल सुनाये
जल भर आये
टूटे नातों की
विरह चिरन्तन
सजल घनाघन
टपटप आन्गन
झर बरसातों की
पीर परायी
शमझ न आयी
स्वर शहनायी
दूर बरातों की
विस्मित धूनी
श्याम सलोनी
बस्ती सूनी
ढोल किरातों की
-पला (एसी)/शान्तिपुरम,अलीगढ उप्र

Tuesday, June 24, 2008

Geet5

गीत क्षेत्रपाल शर्मा
कुछ आगजनी,कुछ राहजनी अब दिन में ये होते आएं 1 यदि चमन बचाना है भाई, उल्‍लू न बसेरा कर पाएं 11
कुछ शाखों की कच्‍ची कलियां- मंहगाई ने हैं कस डाली 1 मासूम हंसी, आचारहीन नागिन ने ऐसी डस डालीं 1 उनकी बीती का मैं श्रोता, बीते तो ऑंखें पथराएं 11
है डाल-डाल विष बेल व्‍याप्‍त रिश्‍वत दल्‍ला ठगिआई की
बिक सके द्रव्‍य के मोल सदृश उस यौवन की अंगड़ाई की 11 चुप रह कब तक ये देखोगे- लज्‍जा न तमाशा – बन जायें 11
क्‍या करवट बदली है युग ने, नृप एक टके में बिक जाए 1 जो सही राह पर चले बाप सुत के सिर आरी चलवाए 1 इन शंकाओं के जालों में कोई तो समाधान पाएं 11
यदि रहे एकजुट बंधु सुनो, विजयी निश्‍चय बन जाओगे 1 यदि चाहा तो उल्‍लू को तुम झटके में मार गिराओगे 11 उन मूलों में मट्ठा डालें - जिनमें जहरीले-फन पाएं 11
चिड़िया के घर अब कैद न हो - भाई जंगल का राजा 1 लासा के लालच में आगे तरकारी भाव न हो खाजा 11 श्रम की सस्‍य उगायें - दिक् को सौरभ से भर जायें

Geet4

गीत क्षेत्रपाल शर्मा

जब भी बही हवा पुरवाई 1

कोई चोट उभर ही आई 11 ऐसा नहीं हुआ है जल से, बादल बूंद-बूंद को तरसे तपती धरती की पीड़ा को

बादल सह जाए बिन बरसे

जल बरसा लो पानी, पानी जब भी चिड़िया धूल ं नहाई 11 तुम पीड़ा ही लेकर आती दर्द नहीं मीठे पाए 1 हर पुकार पर कंठ सूखता नद-ऐसा प्‍यासा लौटाए 11 मन की तृषा नहीं बूझ पाई, जब नयनों में याद नहाई 11 गीत बेसुरा हो जाएगा तुम रोना मत सिखलाओ भले रूठ ही जाना मुझ से

पर अब थोड़ा मुसकाओ प्‍यार भरी किलकारी फूटे, पीड़ा की जब हो अगुआई 11

...............................................

Sunday, June 22, 2008

Geet3

गीत क्षेत्रपाल शर्मा
मैं इस घर हूं, तुम उस घर हो, खुशबू-वाला हाथ नहीं हैं 1
तुम भी तुम हो,मैं भी मैं हूं पहले वाली बात नहीं हैं 11
हर्षित तन था, हर्षित मन भी, समय ठहरने की मनुहारें 1 समय काटने की मजबूरी, अब हाथ छुड़ाएं बूढ़े, बारें 1 धूमिल हैं सब भव्‍य नजारे काया का भी साथ नहीं है 11 तुम भी .........
सब-कुछ-है, पर-नहीं-काम का, बदल गए अपनों के तेवर 1 ठाठ-बाट सब छूटे पीछे, वृथ, अनमोल जड़ाऊँ जेवर 1 दिन ही दिन हैं, बेचैनी के, सपनों वाली रात नहीं है 11 तुम भी .........
ज्‍योतिर्मयी नयन अंधराए,
लोपित हुआ वरन कंचन-सा 1 ज्ञान-बावरा भटके मनुआ, झरे पात कंटक-ठनठन सा 1 हरिया जायें खेत, बाग़-वन, अब ऐसी बरसात नहीं है 11 तुम भी........

पता- डी-7, ईएसआई आवासन, ए.एफ.ब्‍लाक,साल्‍ट लेक, कोलकाता-64
(19.10.2007)

Geet2

ग़ज़ल
क्षेत्रपाल शर्मा, सहायक निदेशक, (ईएसआई.कारपोरेशन)


.गैर हूं ये जानता हूं , मैं तेरा कुछ- भी- नहीं, जो भी हो अब इस तरह, तुम यूं पराया न करो 1
अब तलक हर एक ने सिर्फ तारीफ़ तुम्‍हारी की है, मिलने पर नज़रें, नीचे तो झुकाया न करो 1
सफ़र में कुछ खू़बसूरत नरम-पल भी होते हैं, तुम उनकी ख़्वाहिशमंद न सही, रूठ जाया न करो 1
तुमने मुझे रुसवाई के सिवा दिया क्‍या है, भूल कर मोती, पलकों से बहाया न करो 1

कहूं न तुम से तो फिर दिल की आग दहकेगी, ग़ैर की सुन के, फि.जूल में, तमतमाया न करो 1
ताबीर मेरे .ख्‍वाब की एक दिन, देखना बदलेगी ज़रूर, हाल-फिलहाल तुम मेरी आबरू, .जाया न करो 1



कोलकाता

(07-02-2007)

Geet1

दोहे ( होली पर)
क्षेत्रपाल शर्मा,
बिखरे फूल पलाश के, मौसम है ऋतु-रंग 1
पैरों में थिरकन बढ़ी, जब झूम उठेगी चंग 11

रूप और रस गंध से भरने लगे अनाज,
क्या सरसों, क्या सोमरस, सबने पहने ताज 11

पुलकित है नयनावली, आई होली याद 1
समय-सवाई-सा ठना, अब न सुने फरियाद 11

फाग गा रहे, झुंड में ढ़ाकों के ये पात 1
शिशिर हुई ओझल प्रिये,शरदोत्सव उत्पात 11

बंधन से बिंधते रहे शब्द वचन और मर्म 1
गई मोक्ष के द्वार तक, पगडंडी-सत्कर्म 11

भाल भरे गौ-लाल से, रंग पर बरसे रंग 1
रस में बतरस भर रहे भौंरन के सत्संग 11

11 03 2008
पताः- डी 7, ई.एस.आई क्वार्टर्स
साल्ट लेक, कोलकाता-700064