गीत
क्षेत्रपाल शर्मा
(सम्पर्क - शान्तिपुरम, सासनी गेट, अलीगढ ,उ.प्र.
इतना मत तरसा
यार कुछ बूंदें तो बरसा .
इतनी गरमी हाय पसीना
दिन बदरंग हो गया कारी.
टेर रहा है मोर और
लगी सूखने है फुलवारी.
कुछ भीगेंगे कुछ नाचेंगे
कहरवा, कजरी को हरसा.
यार कुछ....
दृष्टि जहां तक सृष्टि हंसेगी
डाल डाल पर झूले.
दिन की बारहमासी
रातोंरात मल्हारें छूले
मत टंग आस्मान में मैले
झर तू झर झर सा.
यार कुछ....
धूल बनोगे या एक मोती
या वारिधि का संग.
सब कुछ भला भला सा होगा
आओ जैसे गंग.
घर से निकले हो तो
मन में एसा क्यों डर सा.
यार कुछ ........
दिनांक 31.08.2010 ,
नईदिल्ली